सातुड़ी कजली तीज की कहानी
पंद्रह दिन के अंतराल से तीन बार तीज के त्यौहार और व्रत मनाने का अवसर आता है। जिसमे सावनी तीज , सातुड़ी तीज व हरतालिका
तीज धूमधाम से मनाई जाती है। सातुड़ी तीज को कजली तीज और बड़ी तीज भी कहते है। सातुड़ी तीज की पूजा करते है। सातुड़ी तीज
की कहानी , नीमड़ी माता की कहानी , गणेश जी की कहानी और लपसी तपसी की कहानी सुनते है।
कहानी ( 1 )
एक साहूकार था ,उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा पांगला (पाव से अपाहिज़ ) था। वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी
पत्नी बहुत पतिव्रता थी। खुद उसे कंधे पर बिठा कर वेश्या के यहाँ ले जाती थी। बहुत गरीब थी। जेठानियों के पास काम करके अपना गुजारा
करती थी।
भाद्रपद के महीने में कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत और पूजा के लिए सातु बनाये। छोटी बहु गरीब थी उसकी सास ने उसके
लिए भी एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला मुझे वेश्या के यहाँ छोड़ कर आ
हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गयी , लेकिन वो बोलना भूल गया की तू जा।
वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा । कुछ देर बाद नदी आवाज़ से
आवाज़ आई “आवतारी जावतारी दोना खोल के पी। पिव प्यारी होय “ आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी
में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किये और चारों दिशाओं में फेंक दिए।
उधर तीज माता की कृपा से उस वेश्या ने अपना सारा धन उसके पति को वापस देकर सदा के लिए वहाँ से चली गई। पति ने सारा धन लेकर
घर आकर पत्नी को आवाज़ दी ” दरवाज़ा खोल ” तो उसकी पत्नी ने कहा में दरवाज़ा नहीं खोलूँगी। तब उसने कहा कि अब में वापस नहीं
जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सातु पासेगें।
लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे। पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने
दरवाज़ा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने
बैठकर सातु पासा।
सुबह जब जेठानी के यहाँ काम करने नहीं गयी तो बच्चे बुलाने आये काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा अब तो मुझ पर तीज माता की
पूरी कृपा है अब मै काम करने नहीं आऊंगी। बच्चो ने जाकर माँ को बताया की आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की
कृपा हुई है वह नए – नए कपडे गहने पहन कर बैठी है और काका जी भी घर पर बैठे है। सभी लोग बहुत खुश हुए।
हे तीज माता !!! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही वैसी ही सब पर प्रसन्न होना ,सब के दुःख दूर करना।
कहानी ( 2 )
एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था । भाद्रपद महीने की कजली तीज आई। ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत रखा। ब्राह्मण से कहा आज मेरा
तीज माता का व्रत है। कही से चने का सातु लेकर आओ। ब्राह्मण बोला में सातु कहाँ से लाऊं। तो ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे
डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सातु लेकर आओ।
रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने वहाँ पर चने की दाल , घी , शक्कर लेकर सवा किलो
तोलकर सातु बना लिया और जाने लगा। आवाज सुनकर दुकान के नौकर जग गए और चोर चोर चिल्लाने लगे।
साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया । ब्राह्मण बोला में चोर नहीं हूँ । में तो एक गरीब ब्राह्मण हूँ । मेरी पत्नी का आज तीज माता का
व्रत है इसलिए में तो सिर्फ ये सवा किलो का सातु बना कर ले जा रहा था । साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सातु के अलावा कुछ
नहीं मिला।
चाँद निकल आया था ब्राह्मणी इंतजार ही कर रही थी।
साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को में अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सातु , गहने ,रूपये ,मेहंदी , लच्छा और बहुत
सारा धन देकर ठाठ से विदा किया।
बोलो तीज माता की जय !!!