शरद पूर्णिमा की कहानी 

शरद पूर्णिमा का व्रत करने पर शरद पूर्णिमा की कहानी सुनी जाती है। इससे व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।
कथा या इस प्रकार है :-

 

एक साहूकार था उसके दो बेटिया थी। वह दोनों पूर्णिमा का व्रत करती थी। बड़ी बेटी व्रत पूरा करती थी ओर छोटी बेटी अधूरा करती थी।

साहूकार ने दोनों बेटियो का धूमधाम से विवाह किया। कुछ समय पश्चात दोनों गर्भवती हुई और दोनों ने बच्चो को जन्म दिया परन्तु छोटी बेटी

के संतान होते ही मर गयी। इसके बाद भी छोटी बेटी के जब भी संतान होती , होते ही मर जाती थी। छोटी बेटी संतान की मृत्यु से बहुत दुखी

हो गयी उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो पंडितो ने बताया की तुम अधूरा व्रत करती हो जिसके कारण तुम्हारी संतान नहीं बचती हैं।

अगर तुम पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक करोगी तो तुम्हारी संतान जीवित रहेगी।

 

पंडितो के कहे अनुसार उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत विधि पूर्वक किया । इससे उसे लड़का हुआ परंतु तुरन्त ही मर गया। उसने लड़के को पीढ़े
पर लेटाया और चादर से उड़ा कर अपनी बड़ी बहन के पास गयी और उसे बुला कर लायी। बहन को उसी पीढ़े पर बैठने को कहा । बहन जैसे

ही पीढ़े पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे को छू गया ,घाघरा छूते ही बच्चा जीवित हो गया और रोने लगा। तब बड़ी बहन छोटी बहन

से बोली –“तू  मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। “तब छोटीबहन बोली ,”यह तो पहले से ही मृत था। तेरे पुण्य से

जीवित हो गया। तेरे भाग्य से इसका पुनर्जीवन हुआ हैं। ”

 

बच्चे की आवाज़ सुनकर छोटी बहन बहुत खुश हुई उसने अपनी बड़ी बहन से कहा की तू पूरा व्रत करती थी और मैं अधूरा व्रत करती थी

इसीलिए तेरे ऊपर हमेशा भगवान की कृपा हुई और मैं हमेशा अधूरा व्रत करती थी इसीलिये मुझे दोष लगा और मेरी संतान जीवित नहीं रहती

थी। आज तेरे भाग्य से मेरी संतान जीवित हो गयी अतः उसने पूरे  गाँव में ढिंढोरा पिटवा दिया की जो कोई भी व्रत करे वह पूरा व्रत करे अधूरा

न करे।

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