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बछ बारस गोवत्स द्वादशी की कहानी 

बछ बारस Bach Baras  या गोवत्स द्वादशी का व्रत भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन महिलाये रखती है। अपने पुत्र की मंगल कामना

में यह व्रत रखा जाता है और पूजा की जाती है। तथा बच बारस की कहानी ( Bach baras ki kahani ) कहानी सुनी जाती है।

कहानी इस प्रकार है —

 

बछ बारस की कहानी  ( 1 )
 

एक बार एक गांव में भीषण अकाल पड़ा। वहां के साहूकार ने गांव में एक बड़ा तालाब बनवाया परन्तु उसमे पानी नहीं आया। साहूकार ने

पंडितों से उपाय पूछा।  पंडितो ने बताया की तुम्हारे दोनों पोतो में से एक की बलि दे दो तो पानी आ सकता है। साहूकार ने सोचा किसी भी

प्रकार से गांव का भला होना चाहिए। साहूकार ने बहाने से बहु को एक पोते हंसराज के साथ पीहर भेज दिया और एक पोते को अपने पास

रख लिया जिसका नाम बच्छराज था । बच्छराज की बलि दे दी गई । तालाब में पानी भी आ गया।
साहूकार ने तालाब पर बड़े यज्ञ का आयोजन किया। लेकिन झिझक के कारण बहू को बुलावा नहीं भेज पाये। बहु के भाई ने कहा ” तेरे यहाँ

इतना बड़ा उत्सव है तुझे क्यों नहीं बुलाया , मुझे बुलाया है ,मैं जा रहा हूँ। बहू बोली ” बहुत से काम होते है इसलिए भूल गए होंगें “। अपने घर

जाने में कैसी शर्म। ” मैं भी चलती हूँ

 

घर पहुंची तो सास ससुर डरने लगे कि बहु को क्या जवाब देंगे। फिर भी सास बोली बहू चलो बछ बारस की पूजा करने तालाब पर चलें। दोनों

ने जाकर पूजा की। सास बोली , बहु तालाब की किनार कसूम्बल से खंडित करो।  बहु बोली मेरे तो हंसराज और बच्छराज है , मैं खंडित क्यों

करूँ। सास बोली ” जैसा मैं कहू वैसे करो “।  बहू ने सास की बात मानते हुए किनार खंडित की और कहा ” आओ मेरे हंसराज , बच्छराज

लडडू उठाओ। ”

 

सास मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी ” हे बछ बारस माता मेरी लाज रखना। भगवान की कृपा हुई। तालाब की मिट्टी में लिपटा

बच्छराज व हंसराज दोनों दौड़े आये। बहू पूछने लगी “सासूजी ये सब क्या है ?” सास ने बहू को सारी बात बताई और कहा भगवान ने मेरा

सत रखा है। आज भगवान की कृपा से सब कुशल मंगल है।  खोटी की खरी , अधूरी की पूरी


 
 हे बछ बारस माता जैसे सास का सत रखा वैसे सबका रखना।


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