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युधिष्ठिर एवम भीष्म का अंतिम संवाद

युधिष्ठिर एवम भीष्म का अंतिम संवाद आखरी वक्त में पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को समझाया धर्म का मायना | क्या कहा भीष्म ने युधिष्ठिर से जब वे तीरों की शैया पर लेटे हुए थे |

महाभारत का युद्ध एक ऐसा युद्ध था जिसमे भाई ही भाई के विरुद्ध लड़ रहा था | सगा सगे का ही रक्त बहा रहा था ऐसे में मृत्यु को कोई भी प्राप्त हो दुःख दोनों पक्षों में बराबर का होता था |
जब पितामह भीष्म बाणों की शैया पर लेते हुए थे तब युधिष्ठिर उनसे मिलने आये | युधिष्ठिर बहुत दुखी एवम शर्मिंदा थे | अपने पितामह की हालत का जिम्मेदार खुद को मानकर अत्यंत ग्लानि महसूस कर रहे थे | उनकी यह स्थिती देख पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को अपने समीप बुलाकर पूछा – हे पुत्र ! तुम इतना दुखी क्यूँ हो क्या तुम मेरी इस स्थिती का उत्तरदायी खुद को समझ रहे हो ? तब युधिष्ठिर ने नम आँखों के साथ हाँ में उत्तर दिया | जिस पर पितामह ने उन्हें एक कथा सुनाई | क्या थी वह कथा ……

एक समय में देय नामक एक अत्यंत बलशाली महा विद्वान राजा हुआ करता था लेकिन उसकी प्रवत्ति क्रूर थी वो अपनी प्रजा पर अन्याय करता था | अपने नाम की कीर्ति फ़ैलाने के लिए वो प्रजा पर डर का शासन कर रहा था | जिस कारण प्रजा बहुत दुखी थी | शारीरिक एवम मानसिक कष्ट में पुरे राज्य का जीवन कट रहा था क्यूंकि राजा का शासन कुशासन था | अतः धर्म की स्थापना हेतु ब्राह्मणों ने उस राजा का वध किया उसके बाद उसके पुत्र पृथु को राजा बनाया गया जिसका स्वभाव धर्म के अनुरूप था जिसके कारण उस राज्य में सुशासन होने लगा | और प्रजा में खुशहाली आने लगी |उसी प्रकार आज हस्तिनापुर की प्रजा भी दुखी हैं | उनका सुख तुम्हारे शासन में हैं | इस प्रकार प्रजा के सुख एवम धर्म की स्थापना हेतु किये गये कार्य के लिए तुम्हे दुखी होने की आवश्यक्ता नहीं हैं |तुम धर्म के नये स्थापक बनोगे अगर इसके लिए तुम्हे अपनों से भी लड़ना पड़े तो उसका शौक मत करों |
पितामह भीष्म की बात सुन युधिष्ठिर को आत्म शांति का अनुभव होता हैं और वह पुरे उत्साह के साथ युद्ध के आगे के दौर में भाग लेता हैं |
महाभारत का युध्द यही सिखाता हैं कि धर्म की रक्षा के लिए किये गये कार्य कोई भी हो गलत नहीं होते | अपनों के प्रेम में पड़कर अधर्मी का साथ देना गलत होता हैं | जिस प्रकार महाभारत युद्ध में जितने भी महा पुरुषों ने कौरवो का साथ दिया उनका अंत बुरा हुआ | उनके सारे सत्कर्मो का नाश हुआ क्यूंकि उन्होंने अपने व्यक्तिगत धर्म को देश एवम मातृभूमि के उपर रखा जिसके फलस्वरूप उनका नाश हुआ |

धर्म का रास्ता सरल नहीं हैं लेकिन जो उस पर चलते हैं | उन्ही का जीवन सार्थक होता हैं |

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